मैं करूं अगर सामने से पहल

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तो बात हो जाती है,

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वरना सुबह से शाम

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और शाम से रात हो जाती है।

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कुछ इस तरह से हमारी बातें कम हो गई..

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कैसे हो पर शुरू और ठीक हो पर खत्म हो गई..

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इश्क के भी अलग ही फसाने हैं।

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जो हमारे नही हैं हम उनके ही दीवाने हैं।।

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वादों की तरह इश्क़ भी आधा रहा,

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मुलाकातें कम रहीं, इंतजार ज्यादा रहा

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इश्क़ में यह बात मुझे रह रह कर खटकती है,

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दिल उसका भरा था मुझसे तो आंख मेरी क्यूं छलकती है।

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जिंदगी जला ली हमने जैसी जलानी थी, शाहब

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अब धुएं पे तमाशा कैसा और राख पर बहस कैसी..!

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ना अनपढ़ रहे, ना काबिल हुए

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