हर कहानी को लिखने का हुनर जानता हूँ, अपने आप को तराशने का हुनर जानता हूँ।
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ज़िद थी तो मालिक हूँ, नहीं तो किसी का नौकर होता।
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मैं अब किसी इंसानों से मुहब्बत नहीं करता, बस पैसो से मुहब्बत करता हूँ, क्योंकि इंसान भी पैसों से ही मुहब्बत करता है।
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मैं अब अपने अलावा किसी और को सवारना नहीं चाहता।
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जब सब को एक ना एक दिन मरना ही है, तो अपने हिसाब से क्यू ना जियें।
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मैं अपनों के लिए जीता हूँ, अपने लिए तो हर कोई जीता है यहाँ।
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दिन का सूरज निकला है, मेरी ज़िंदगी का निकलने में था समय लगेगा।
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मैं मोहब्बत के लिए नहीं, दुनिया मेरे मोहब्बत के लिए बनी है।
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मैं तुम्हारी ज़िंदगी में ना सही, लेकिन तुम्हारी सुकून तो मुझ से है।
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कुछ यूँ मैं ज़िंदगी के रास्तों पर चल रहा हूँ, ना जाने क्यू अपनों में अपना ढूंढ रहा हूँ।
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