कभी कभी किसी से दूर होते वक्त एक ख्याल आता है, "चलो जान छूटी"। ना जाने क्यू लेकिन उस से दूर जाते वक्त मुझे ऐसा ही ख्याल आ रहा था।

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जब से मैं सफर करने लगा हूँ, अब ये सफर हमसफ़र सा लगने लगा है।

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एक तेरे अलावा पूरे दुनिया से मिल ली मैंने, पर मेरी दुनिया तो तू है मेरी जान।

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जान हम तुम्हें अपनी जान की तरह रखेंगे, बस एक बार इजाज़त तो दे के देख।

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हम भी शायरी लिखने लगे है, उसमें मैं तुम्हें अपनी जान लिखने लगे है।

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मैं बस ऊपर वाले से इतनी सी दुआ करता हूँ, जिसमें मेरी जान बसी है वो सलामत रहे।

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यूं ना तड़पा उस बेज़ुबान को, उस में भी जान बसती है।

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उनको अपनी जान समझ के हम सबसे बड़ी भूल कर दी।

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अपने आप की नज़रों में सही हूँ, बांकी हमें किसी से भी फर्क नहीं पड़ता मेरी जान।

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दुआ अपने आप की नहीं, अपने जान की कर रहा हूँ, जिसे मैं अपनी माँ कहता हूँ।

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