तूने एक घर बसाया है मेरे बिना, लगता है वो घर तुझे भा नहीं रहा मेरे बिना।
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काश मेरे घर के एक कमरे में एक तस्वीर मै हम तुम होते और ज़िन्दगी का एक नगमा लिख रहे होते।
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प्रेम के मायने में ये भ्रम कैसा, तुम मेरे हो तो इसमे शक कैसा?
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काश ज़िन्दगी तुझ बिन अधूरी लगती और राते पूरी मैं अक्सर तेरे सपनो मै घूमता रहता।
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ये लब ही हैं जो तेरा नाम अभी भी नहीं भुलते, वरना जुबान ने तो कब का तुझे भुला दिया था।
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सोच रहा था एक चाँद तेरे बिना, पर उसमे भी दाग निकला।
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लाख कोशिश कर लूं पर तेरे बिना दिल ये मानने को राज़ी नहीं।
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क्या है तेरे बगैर इस जीवन का मायना, तुझको चाहे तो जीवन पूरा और न चाहें तो अधूरा।
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सिर्फ़ तुम हो जो मेरे मन के अंदर घुस के बैठे हो, वरना मैं तो खामोश हि था भीड में भी।
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लगता है अब सब कुछ अलग है हमारे बीच, कुछ नया सा और कुछ पुराना सा है हमारे बीच।
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तुझसे मेरी यादें अब जुड़ चुकी हैं, अब तेरे बिन अब मेरा मन कहिं नहीं लगता।
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सोचता था तुझको जन्नत की सैर कराऊंगा, पर साथ तो जमीं तक का भी नहीं रहा।
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शोर है फिज़ाओं में या कहीं, और ये दिल है के तेरे बिना बहका रहता है।
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मन के आगे सब कुछ अधूरा सा लगता है और मन मेरा तेरे बगैर कहिं और जाने को राज़ी नहीं।
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ज़िंदगी में तेरे सिवा एक ख्वाहिश को बना रखा था जो तुझसे ही जुड़ी थी, अब वो भी अधूरी सी लगती है।
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