कुछ लोगों के लिए हम बुरे बन गए, क्योंकि हम उनका काम नहीं करते।
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कुछ लोग अपना काम करना तक भूल जाते है, दूसरों की कमियों को निकालने के लिए।
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आजकल हम डरपोक की गिनती में आते है, अपनों से सामना करने की हिम्मत नहीं है मुझ में।
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उनका जब मतलब निकल गया तो उन्होंने हम से कहा, "हम पहले मिले है कहीं"? हमने भी उनके मुँह पर कह दिया, "आप हम से मिल सकें आपकी इतनी औकात नहीं।"
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लोग आजकल इबादत करने के वक़्त भी अपनी नियत साफ नहीं रखते, मेरी तो वो निंदा कर रहे थे।
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हिसाब हमने भी बराबर कर दी, हम भी उनके जैसा बन गए।
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जब कभी भी मैं मतलबी शब्द सुनता हूँ तुम्हारा ही नाम याद आता है।
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हर मतलबी इंसान यही कहता है, मैं थोड़ा ना मतलबी हूँ।
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मतलब हमें बस उनसे था, शायद इसीलिए वो मतलबी बन गए।
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उजालों में डर सा लगने लगा है, उनमें अपनों की शक्ल दिखाई देती है।
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