हमें पता है तुम कहीं और के मुसाफिर हो,
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हमारा शहर तो बस यूँ ही रास्ते में आया था !
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वो रास्ते जिन पे कोई सिलवट ना पड़ सकी,
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उन रास्तों को मोड़ के सिरहाने रख लिया !
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इश्क़ ने गालिब निकम्मा कर दिया,
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वर्ना हम भी आदमी थे काम के !
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वो उम्र भर कहते रहे तुम्हारे सीने में दिल नहीं,
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दिल का दौरा क्या पड़ा ये दाग भी धुल गया !
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कुछ लम्हे हमने खर्च किए थे मिले नही,
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सारा हिसाब जोड़ के सिरहाने रख लिया !
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फिर उसी बेवफा पे मरते हैं,
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फिर वही जिंदगी हमारी है ।
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मौत पे भी मुझे यकीन है,
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तुम पर भी ऐतबार है,
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देखना है पहले कौन आता है,
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