माना की जिंदगी में गम बहुत है ,

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कभी सफर पर निकलो और देखो खुशियां ।

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दहशत सी होने लगी है इस सफर से,

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अब तो ए-जिंदगी कहीं तो पहुँचा दे,

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खत्म होने से पहले !

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मैं तो यूँ ही सफर पर निकला था,

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एक अजनबी मिला और,

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उसने अपना बना लिया !

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रस्ते कहाँ ख़त्म होते हैं जिंदगी के सफर में,

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मंजिल भी वहीं है जहाँ ख्वाहिशें थम जाएँ ।

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मंजिल बड़ी हो तो सफर में कारवां छूट जाता है,

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मिलता है मुकाम तो सबका वहम टूट जाता है ।

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इस सफर में नींद ऐसी खो गई,

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हम न सोए रात थक कर सो गई ।

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इन अजनबी सी राहों में जो तू मेरा,

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