नींद से क्या शिकवा करूं मैं जो रात भर आती नहीं,

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कसूर तो उस चेहरे का है जो रात भर सोने नही देता !

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अब क्या लिखूं तेरी तारीफ में मेरे हमदम,

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अलफाज कम पड़ जाते है तेरी मासूमियत देखकर !

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अल्फाज खुशी दे रहे थे मुझे और,

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वो मेरे इश्क की तारीफ कर रही थी !!

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उसने महबूब की तारीफ कुछ इस कदर की,

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रात भर आसमान में चाँद भी दिखाई न दी !

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मुझको मालूम नहीं हुस़्न की तारीफ,

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मेरी नजरों में हसीन वो है जो तुम जैसा हो !

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तुम्हारे गालों पर एक तिल का पहरा भी जरूरी है,

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डर है की इस चहरे को किसी की नजर न लग जाए !!

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ख्वाहिश ये नहीं की मेरी तारीफ हर कोई करे,

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बस कोशिश ये है की मुझे कोई बुरा न कहे !!

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मासूम सी सूरत तेरी दिल में उतर जाती है,

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