ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये।
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औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।
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दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।
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जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ।
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क्या भरोसे देह का, बिनस जाय क्षण माही।
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सांस सांस सुमिरन करो, और जतन कछु नाही॥
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गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काको लागूं पाय
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बलिहारी गुरु आपकी, जिन गोविंद दियो बताय।
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साईं इतना दीजीए, जामे कुटुंब समाए
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मै भी भूखा न रहूं, साधू न भूखा जाए।
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मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई.
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पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई.
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कबीर कुआ एक हे,पानी भरे अनेक।
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बर्तन ही में भेद है पानी सब में एक ।।
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बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
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